यह अपनी तरह का पहला शोध है, जो बताता है कि पृथ्वी पर नमक के क्रिस्टल इसके पैरंट एस्टरॉयड से आए थे। इटोकावा एक एस-टाइप का एस्टरॉयड है। ऐसे उल्कापिंड और एस्टरॉयड पृथ्वी पर पूर्व में पाए जाते रहे हैं।
पिछले साल एक स्टडी से यह भी पता चला था कि पृथ्वी पर पानी एस्टरॉयड से आया हो सकता है। रिसर्चर्स ने एस्टरॉयड रयुगु (Ryugu) के पृथ्वी पर लाए गए सैंपलों की जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला था। इन सैंपलों को भी जापान के स्पेसक्राफ्ट हायाबुसा -2 (Hayabusa-2) ने जुटाया था।
रिसर्चर्स का मानना है कि पृथ्वी, सोलर नेबुला के इनर क्षेत्र में बनी है, जहां तापमान बहुत अधिक था। इसका मतलब है कि पृथ्वी पर पानी, सोलर नेबुला के बाहरी इलाकों से आना था, जहां तापमान कम रहा होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि सोलर नेबुला के बाहर मौजूद धूमकेतु और एस्टरॉयड पानी को पहुंचाने के लिए पृथ्वी से टकराए।
रिसर्चर्स ने जिस सैंपल में नमक यानी साेडियम क्लोराइड की खोज की, वह एक धूल का कण है, जिसका व्यास 150 माइक्रोमीटर है। यह इंसान के बाल के चौड़ाई से दोगुना है। टीम ने इस कण का छोटा सा हिस्सा जो केवल 5 माइक्रोन चौड़ा था, उसे लेकर जांच की।
रिसर्चर्स ने इस बात से इनकार किया कि सैंपल किसी भी प्रकार से दूषित हुआ होगा। रिसर्च शुरू करने से पहले वैज्ञानिकों ने सैंपल को अच्छे से परखा। वह 5 साल से सुरक्षित था। वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि उन्हें सैंपल में जो नमक मिला है, वह इटोकावा का है।