सांप इन द गंगा (Amazon) – https://amzn.to/3V6J2Ri भारत की वलनरेब्लिटी (भेद्यता/कमजोर कड़ियाँ) का फायदा कैसे उठाएं (फाल्ट लाइन्स) का फायदा उठाएं, भारत को तोड़ा जाए, ये मकसद है। कश्मीर एक अलग देश हो, तमिल भाषा बनाम हिंदी, चिकेन नेक काटकर भूत को अलग करने का प्रयास, ये सभी हम लोग हाल के समय में देख चुके हैं। ऐसे कई प्रयासों का गढ़ हॉवर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में है। हाल में “वैश्विक हिंदुत्व को खत्म करना” जैसे पदों के जरिए हिंदुत्व को बदनाम करने के विश्वविद्यालय स्तर के प्रयासों को हम देखते हैं। ऐसी घटनाओं के बाद अमेरिका-ब्रिटेन आदि देशों में हिंदुओं पर हमलों की घटनाएं हुई भी दिख रही हैं। जब आप “जागो हिन्दू जागो” के नारे का मजाक उड़ा रहे थे, उसी दौर में “वोक कल्चर” पैदा हो गया। मूलतः “वोक” का अर्थ ही जागा होता है! क्या कोई विचित्र है? जिसके लिए आपका मजाक उड़ाया जाता है, वही कोई अपना आंदोलन का नाम रखता है। इस आन्दोलन को आप सरकारी तंत्र में, शिक्षण दृष्टिकोण में, संस्कृति और समाज में घुसते हुए भी आराम से महसूस कर सकते हैं। पश्चिमी कॉर्पोरेट जगत में प्रवेश भी संभव होगा। सरकारी तंत्र अभी तक केवल हिन्दुओं में अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन (आर्थिक) देता है, लेकिन कॉर्पोरेट जगत में ये गे-लेस्बियन विवाह के लिए भी शुरू हो जाता है। सामाजिक न्याय की अवधारणा जो राजनीति से शुरू होती दिखी थी, वो अब और क्षेत्रों में प्रवेश कर रही है और किसी न किसी तरह के छोटे-छोटे दावों को शोषित बताकर युवाओं की राजनीति जारी है। ऐसे ही मुद्दों पर ये किताब “स्नेक्स इन द गंगा” लाइट लाइट है। अकादमिक जगत में ऐसी घुसपैठ का असर होता है। नई शिक्षा नीति (नेशनल एजुकेशन पालिसी 2020) में जो “उदार कला” नजर आती है, वो ऐसे कई विचार को शिक्षा के माध्यम से किशोर-युवा मन में बिठा सकती है। जिसे हम-आप आज “इकोसिस्टम” बुलाते हैं, वो विचार, संगठन, संगठन और युवा नेतृत्व को जोड़ते ही बनते हैं। मिले हुए दौर में हमें किसका सामना करना पड़ता है, भारत विखंडन के लिए दशकों से जो शक्तियां जुड़ी हुई हैं, वो कैसे रूप में बदल रही हैं, इसका मूल्यांकन मूल्यांकन हो तो “स्नेक्स इन द गंगा” रीडिंग बुक होगी। इसकी अंग्रेजी सरल नहीं, न ही विषय सरसरी आवेदकों से पढ़ लेने पर समझ में आने वाले हैं। स्लो गति से फॉलोकर अगर पढ़ सकते हैं, तो इस मोटी सी किताब को पढ़ें।
