क्या “कलाकार” नरसंहार, सामूहिक हत्याओं, नरसंहारों का मज़ाक उड़ाते हैं? अगर नहीं तो हम मुनव्वर फारुकी को कलाकार कैसे मान सकते हैं? अगर हम असहमति के अधिकार की बात करें तो मेरे असहमति के अधिकार का क्या हुआ? क्या मैं उस तरह के कोलाहल के खिलाफ आवाज उठाने का हकदार नहीं हूं, जिसे मुनव्वर “स्टैंड-अप कॉमेडी” के रूप में पेश करते हैं?

This Recist fellow need respect for their own fait & prophet… So disgusting
बहुत सराहनीय