सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (12 अगस्त 2025) को बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई की।
पिछली सुनवाई में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव आयोग को चेतावनी दी थी कि यदि संशोधित सूची में “बड़े पैमाने पर बहिष्कार” दिखा तो अदालत “कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगी।” याचिकाकर्ताओं ने SIR प्रक्रिया की आलोचना “नागरिकता जांच” के रूप में की है।
लोकतांत्रिक सुधार संगठन (ADR), जिसने 24 जून के चुनाव आयोग के SIR आदेश को चुनौती दी है, ने पिछले सप्ताह एक नई याचिका दायर कर चुनाव आयोग को लगभग 65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नाम और हटाने के कारण प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की है।
इसके जवाब में, चुनाव आयोग ने शनिवार (9 अगस्त 2025) को कोर्ट को बताया कि बिहार के ड्राफ्ट मतदाता सूची से नाम हटाने का कार्य, जो 1 अगस्त को SIR प्रक्रिया के तहत प्रकाशित की गई थी, केवल पूर्व सूचना के बाद ही किया जाएगा, जिसमें हटाने के कारण स्पष्ट किए जाएंगे। आयोग ने यह आश्वासन दिया कि यह प्रक्रिया प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करेगी, जिसके तहत प्रभावित मतदाताओं को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाएगा और वे समर्थन में दस्तावेज़ जमा कर सकेंगे। आयोग ने यह भी कहा कि कोई भी आदेश संबंधित प्राधिकारी द्वारा “युक्तिसंगत और स्पष्ट” होगा।
मुख्य अपडेट्स
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नागरिकता निर्धारण चुनाव आयोग का काम नहीं है: सिंगवी
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग के SIR आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि नागरिकता निर्धारित करना आयोग का कार्य नहीं है। -
भूषण ने पारदर्शिता की कमी और मतदाता सूची तेजी से संशोधित करने में चुनौतियाँ उजागर कीं
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और तीव्र पुनरीक्षण के दौरान आने वाली दिक्कतों को रेखांकित किया। -
सिब्बल ने जनवरी 2003 के संशोधन के बाद नए SIR की आवश्यकता पर सवाल उठाया
उन्होंने पूछा कि पहले से ही हाल ही में एक व्यापक संशोधन हो चुका है, तो फिर नया SIR क्यों आवश्यक है। -
“पीड़ित व्यक्तियों के नाम दो, चुनाव आयोग जवाबदेह होगा”: न्यायमूर्ति सूर्यकांत
पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि हटाए गए मतदाताओं के नाम सार्वजनिक करें, तभी आयोग को जवाबदेह ठहराया जा सकेगा। -
ड्राफ्ट मतदाता सूचियों में मामूली गलतियाँ होना स्वाभाविक, BLOs द्वारा सुधार योग्य: चुनाव आयोग
आयोग ने माना कि प्रारंभिक सूची में छोटे-मोटे त्रुटियाँ हो सकती हैं, जिन्हें ब्लॉक लेवल अधिकारियों द्वारा सुधारा जा सकता है। -
याचिकाकर्ताओं ने ड्राफ्ट सूची में 65 लाख मतदाताओं के ‘बड़े पैमाने पर बहिष्कार’ की चिंता जताई
उन्होंने इस प्रक्रिया को ‘मास एक्सक्लूजन’ बताते हुए संवैधानिक मूल्यों पर प्रश्न उठाए हैं।
12 अगस्त, 2025 | 12:56 बजे
याचिकाकर्ताओं ने ड्राफ्ट मतदाता सूची से 65 लाख मतदाताओं के ‘बड़े पैमाने पर बहिष्कार’ पर जताई चिंता
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और गोपाल शंकरनारायणन ने याचिकाकर्ताओं की ओर से अपनी दलीलें फिर से शुरू कीं।
श्री शंकरनारायणन ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कहा था कि यदि “बड़े पैमाने पर बहिष्कार” होता है, तो अदालत हस्तक्षेप करेगी। उन्होंने कहा कि अब यह स्थिति आ चुकी है, क्योंकि मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटा दिए गए हैं। श्री सिब्बल ने जोड़ा कि 12 ऐसे व्यक्ति, जिन्हें आधिकारिक रिकॉर्ड में मृत बताया गया था, बाद में जीवित पाए गए।
12 अगस्त, 2025 | 12:59 बजे
ड्राफ्ट सूची में मामूली त्रुटियां स्वाभाविक, BLO उन्हें सुधार सकते हैं: चुनाव आयोग
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि संबंधित सूची केवल एक ड्राफ्ट रोल है और इस तरह की प्रक्रिया में मामूली त्रुटियां होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि इन त्रुटियों को बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) द्वारा ठीक किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी जोड़ा, “ऐसा नहीं है कि हर तीसरे दिन अदालत में आकर यह कहा जाए कि 12 लोगों को मृत घोषित कर दिया गया लेकिन वे जीवित पाए गए, या इसका उल्टा हुआ।”
12 अगस्त, 2025 | 13:08 बजे
नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी मतदाताओं की नहीं, ECI की है: कपिल सिब्बल
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 का हवाला देते हुए कहा कि किसी मतदाता की नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है, न कि व्यक्तिगत मतदाताओं की।
मसौदा मतदाता सूची नियमों के अनुरूप नहीं, आपत्ति के बिना दस्तावेज़ नहीं मांग सकता ECI: कपिल सिब्बल
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि मसौदा मतदाता सूची तैयार करते समय चुनाव आयोग, तब तक किसी भी प्रकार के दस्तावेज़ नहीं मांग सकता जब तक पहले कोई आपत्ति दर्ज न हो। उनका कहना था कि मौजूदा मसौदा मतदाता सूची की तैयारी, रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप नहीं की गई है।
12 अगस्त, 2025 | 13:13 बजे
पीड़ित व्यक्तियों के नाम दें, चुनाव आयोग को जवाबदेह ठहराया जाएगा: जस्टिस कांत
जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि यदि वास्तव में कोई व्यक्ति इस प्रक्रिया से पीड़ित है, तो उनके नाम अदालत को दिए जाएं ताकि चुनाव आयोग को जवाबदेह ठहराया जा सके।
इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा कि त्रुटियां बूथ स्तर पर अब भी बनी हुई हैं। उन्होंने सवाल किया कि इन्हें कैसे सुधारा जाएगा, और इस स्थिति को “अनुचित” करार दिया।
12 अगस्त, 2025 | 13:14 बजे
दोपहर 2 बजे फिर शुरू होगी सुनवाई
दोपहर के भोजनावकाश के लिए पीठ उठी। मामले की सुनवाई अब दोपहर 2 बजे से पुनः शुरू होगी।
12 अगस्त, 2025 | 14:23 बजे
सुनवाई दोबारा शुरू
याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने दोबारा अपनी दलीलें शुरू कीं। उन्होंने अदालत को वह विवरण दिखाया, जिसमें नामांकन फॉर्म भरते समय आवेदकों से मांगे जाने वाले दस्तावेजों की सूची दी गई है।
सिब्बल ने कहा, “नामांकन फॉर्म में जो मांगा जा रहा है, वह पूरी तरह कानून के विपरीत है।”
12 अगस्त, 2025 | 14:32 बजे
नामांकन फॉर्म में दस्तावेज़ी शर्तों पर बहस
कपिल सिब्बल ने नामांकन फॉर्म में मांगे जाने वाले दस्तावेज़ों का विस्तार से जिक्र किया। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि ये दस्तावेज़ केवल नामांकन की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए मांगे जाते हैं, और आवेदक को सभी नहीं, बल्कि सिर्फ एक दस्तावेज़ देना होता है।
सिब्बल ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि आधार कार्ड को चुनाव आयोग मान्यता नहीं देता और बिहार के कई लोगों के पास ऐसे “संकेतक” दस्तावेज़ नहीं हैं।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने जवाब दिया, “बिहार भारत का हिस्सा है, और अगर वहां के लोगों के पास ये दस्तावेज़ नहीं हैं, तो देश के अन्य राज्यों में भी कई लोगों के पास ये दस्तावेज़ नहीं होंगे।”
12 अगस्त, 2025 | 14:37 बजे
नागरिकता प्रमाण के रूप में आधार स्वीकार नहीं: सिब्बल
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आवश्यक दस्तावेज़ किसी व्यक्ति को राज्य का वास्तविक निवासी साबित करते हैं, और एक बार ये दस्तावेज़ प्रस्तुत कर दिए जाएं, तो जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर आ जाती है।
इस पर कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि बिहार में अधिकांश लोगों के पास आधार कार्ड है, लेकिन बूथ स्तर अधिकारियों (BLOs) द्वारा इन्हें नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा रहा है।
12 अगस्त, 2025 | 14:48 बजे
क्या विशेष गहन पुनरीक्षण कराने की शक्ति चुनाव आयोग के पास है, यह भी चुनौती में है?: जस्टिस कांत
जस्टिस सूर्यकांत ने कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या वे चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) कराने की शक्ति को ही चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने कहा, “अगर ऐसी शक्ति मौजूद ही नहीं है, तो बहस के लिए आगे कुछ बचता नहीं।”
12 अगस्त, 2025 | 14:56 बजे
2003 की संशोधित मतदाता सूची के बाद नए SIR की ज़रूरत क्यों?: सिब्बल
कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि 2003 में बिहार में आखिरी बार गहन पुनरीक्षण के दौरान जिन मतदाताओं के नाम सूची में दर्ज हुए थे, उन्हें नागरिकता साबित करने के लिए कोई दस्तावेज़ देने की ज़रूरत नहीं थी—सिर्फ नामांकन फॉर्म भरना काफी था।
लेकिन, 7 जनवरी 2025 को प्रकाशित सारांश पुनरीक्षण के बाद की सूची में दर्ज मतदाताओं को ऐसे दस्तावेज़ देने पड़ रहे हैं।
जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, “जब जनवरी 2025 में पहले ही पुनरीक्षण हो चुका है, तो अब विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की ज़रूरत क्यों?”
इस पर सिब्बल ने कहा कि यही तो याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलील है। उन्होंने चेताया कि अगर इस प्रक्रिया में किसी का नाम काट दिया गया, तो बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उसे फिर से सूची में शामिल करने के लिए बहुत कम समय बचेगा।
12 अगस्त, 2025 | 15:03 बजे
वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम हटाने पर सिब्बल ने उठाए सवाल
कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग की 25 जुलाई की प्रेस विज्ञप्ति का हवाला दिया, जिसमें मौजूदा मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाने का उल्लेख है।
प्रेस नोट के अनुसार, 24 जून 2025 से स्थानीय बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) और बूथ लेवल एजेंट (BLA) ने करीब 22 लाख ऐसे मतदाताओं की सूचना दी है जो अब नहीं रहे, 7 लाख ऐसे मतदाता जो एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत हैं, और 35 लाख ऐसे मतदाता जो या तो स्थायी रूप से कहीं और चले गए हैं या जिनका पता नहीं चल पाया।
इसके अलावा, करीब 1.2 लाख मतदाताओं के नामांकन फॉर्म अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं।
12 अगस्त, 2025 | 15:06 बजे
ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में गलती संभव, प्रभावित लोग सामने आएं: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस बागची ने कहा कि सारांश पुनरीक्षण (Summary Revision) में नाम जुड़ जाने का मतलब यह नहीं है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के बाद भी व्यक्ति का नाम स्वतः ड्राफ्ट मतदाता सूची में बना रहेगा।
जस्टिस सूर्यकांत ने जोड़ा कि ड्राफ्ट लिस्ट तैयार करने में गलतियां हो सकती हैं, जैसे किसी मृत व्यक्ति का नाम शामिल हो जाना, लेकिन बाद में इन्हें सुधारा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी को यह जानकारी नहीं मिली कि कौन-से दस्तावेज़ जमा करने हैं, तो उन्हें आगे आकर कोर्ट को सूचित करना चाहिए।
12 अगस्त, 2025 | 15:13 बजे
भूषण ने पारदर्शिता की कमी और तेज़ी से हो रहे वोटर लिस्ट संशोधन पर उठाए सवाल
एडवोकेट भूषण ने बताया कि 4 अगस्त के बाद ड्राफ्ट वोटर लिस्ट खोजने की सुविधा हटा दी गई है।
उनके अनुसार, चुनाव आयोग के पास मृत, लापता, डुप्लिकेट या स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाताओं की सटीक संख्या मौजूद है, लेकिन आयोग यह जानकारी साझा नहीं कर रहा। उनका कहना है कि यह जानकारी बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) को दी गई है, जबकि BLAs का कहना है कि उनके पास यह डेटा नहीं है।
भूषण ने आगे कहा कि प्रत्येक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को कम से कम तीन लाख लोगों के दावे और आपत्तियां सुननी होंगी। “वे यह काम कैसे पूरा करेंगे? देश के इतिहास में कभी इतनी कम अवधि में इतनी गहन मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया नहीं हुई,” उन्होंने कहा।
12 अगस्त, 2025 | 15:15 बजे
6 करोड़ से अधिक मतदाताओं को दस्तावेज़ देने से छूट; याचिकाकर्ताओं के तर्क अनुमान पर आधारित: चुनाव आयोग
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि एक सतर्क अनुमान के मुताबिक, 6.5 करोड़ मतदाताओं को किसी भी दस्तावेज़ की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे 2003 की मतदाता सूची में शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि ऐसे मतदाताओं के बच्चों को केवल यह साबित करना होगा कि उनके माता-पिता या रिश्तेदार उस सूची का हिस्सा थे, जो बिहार में पिछली व्यापक पुनरीक्षण प्रक्रिया के बाद तैयार की गई थी।
द्विवेदी ने यह भी जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ताओं के सभी तर्क केवल अटकलों पर आधारित हैं।
12 अगस्त, 2025 | 15:23 बजे
संकेतक दस्तावेज़ तय करने के अधिकार को लेकर चुनाव आयोग पर सवाल
वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने दलील दी कि चुनाव आयोग ने संकेतक (indicative) दस्तावेज़ों की सूची तय करके संसद के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है।
जस्टिस सूर्यकांत ने एक बार फिर स्पष्टता मांगी कि क्या याचिकाकर्ता विशेष व्यापक पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) की प्रक्रिया को चुनौती दे रहे हैं या इसके आरंभ को ही।
इसके जवाब में ग्रोवर ने सवाल किया कि क्या 11 संकेतक दस्तावेज़ों को अंतिम रूप देने से पहले कोई संसदीय प्रक्रिया अपनाई गई थी।
12 अगस्त, 2025 | 15:34 बजे
नागरिकता तय करना चुनाव आयोग का काम नहीं: सिंघवी
वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने तर्क दिया कि नागरिकता निर्धारण चुनाव आयोग की भूमिका नहीं है। उनका कहना था कि यदि बिहार में करोड़ों लोग पहले से मतदाता सूची में दर्ज हैं, तो आयोग उन्हें दोबारा नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ पेश करने को बाध्य नहीं कर सकता। यह मानो पूर्वधारणा के आधार पर बहिष्करण (presumptive exclusion) है, जब तक कि आयोग स्वयं दस्तावेज़ों का सत्यापन न करे।
उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग के अनुसार, जब तक आप दस्तावेज़ नहीं दिखाते, तब तक यह मान लिया जाता है कि आप नागरिक नहीं हैं।”
12 अगस्त, 2025 | 15:44 बजे
दस्तावेज़ न दिखाने पर नागरिक न मानना, बिहार के लोगों के साथ नाइंसाफी: सिंघवी
ए.एम. सिंघवी ने जोर देकर कहा, “चुनाव आयोग के अनुसार, जब तक आप दस्तावेज़ नहीं दिखाते, तब तक यह मान लिया जाता है कि आप नागरिक नहीं हैं।”
उन्होंने बताया कि बिहार की बड़ी आबादी के पास डिजिटलीकृत रिकॉर्ड नहीं हैं, और बाढ़ व निरक्षरता के कारण जन्म प्रमाणपत्र—अपने और अपने माता-पिता दोनों के—अक्सर खो जाते हैं।
सिंघवी का तर्क था कि चुनाव आयोग को यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि ये दस्तावेज़ आसानी से संकलित और उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
12 अगस्त, 2025 | 15:47 बजे
नागरिकता साबित करने का बोझ गलत तरीके से मतदाताओं पर डाला: सिंघवी
ए.एम. सिंघवी ने कहा कि अगर लोग पहले से ही मतदाता सूची में दर्ज हैं और उन्हें वैध नागरिक माना गया है, तो चुनाव आयोग इस धारणा को पलटकर पूरा बोझ मतदाताओं पर नहीं डाल सकता।
उन्होंने आरोप लगाया कि “गहन पुनरीक्षण” के नाम पर आयोग ने विधानसभा चुनाव से सिर्फ दो महीने पहले, नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्तिगत मतदाताओं पर थोप दी है।
12 अगस्त, 2025 | 15:58 बजे
सिंघवी ने “लाल बाबू हुसैन बनाम निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (1995)” फैसले का हवाला दिया
ए.एम. सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के “लाल बाबू हुसैन एवं अन्य बनाम निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (1995)” के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि ड्राफ्ट मतदाता सूची से नाम हटाने से पहले प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य है।
उन्होंने दलील दी कि विधानसभा चुनाव से पहले बचे हुए बेहद कम समय में यह प्रक्रिया पूरी कर पाना संभव नहीं है।
12 अगस्त, 2025 | 16:16 बजे
SIR ने कमजोर मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का बोझ डाल दिया: योगेंद्र यादव
याचिकाकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने व्यक्तिगत रूप से अपनी दलीलें पेश करना शुरू किया।
उन्होंने कहा कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया असफल रही है और उल्टा नुकसानदेह साबित हुई है। यादव के अनुसार, दुनियाभर में मतदाता सूची की पूर्णता मापने का मानक तरीका यह है कि वयस्क आबादी की तुलना पंजीकृत मतदाताओं की संख्या से की जाए।
उन्होंने चेतावनी दी कि जैसे ही नागरिकता साबित करने का बोझ राज्य से हटकर नागरिक पर आता है, सटीक मतदाता संख्या तुरंत गड़बड़ा जाती है। उनका कहना था कि इस प्रक्रिया में जो लोग बाहर रह जाते हैं, वे आमतौर पर हाशिये पर खड़े और गरीब वर्ग से होते हैं — जो कुल मतदान आबादी का लगभग एक-चौथाई हो सकते हैं।
12 अगस्त, 2025 | 16:25 बजे
मतदाता सूची में बिहार की वयस्क आबादी से 29 लाख कम नाम: योगेंद्र यादव
सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए योगेंद्र यादव ने कहा कि बिहार की वयस्क आबादी 8.18 करोड़ है, जबकि मतदाता सूची में केवल 7.89 करोड़ मतदाताओं के नाम दर्ज हैं — यानी 29 लाख कम।
उन्होंने कहा, “गलतियाँ होती हैं, लेकिन यह पहला संशोधन है जिसमें एक भी नया नाम जोड़ा नहीं गया है।”
12 अगस्त, 2025 | 16:32 बजे
क्या SIR का इस्तेमाल फर्जी मतदाताओं को हटाने के लिए हो सकता है? — पीठ
जस्टिस कांत ने पूछा कि क्या स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का इस्तेमाल फर्जी मतदाताओं को हटाने के लिए किया जा सकता है।
योगेंद्र यादव ने जवाब दिया कि घर-घर सत्यापन के दौरान अधिकारियों को “किसी भी घर में एक भी नया नाम जोड़ने का मामला नहीं मिला।” उन्होंने कहा, “जब आप मेरे घर आते हैं तो आप नाम हटाने के लिए देखते हैं, जोड़ने के लिए नहीं — जबकि 28 लाख नए नाम जोड़े जा सकते थे। ECI कह सकती है कि हम फॉर्म-6 भर सकते हैं, लेकिन यह संशोधन प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा कि कानूनी आदेशों में प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से बदलाव किए जा रहे हैं और टिप्पणी की, “कम से कम नोटबंदी के दौरान RBI ने अधिसूचनाएं जारी की थीं — ECI के विपरीत।”
12 अगस्त, 2025 | 16:40 बजे
भारत के इतिहास का सबसे बड़ा मताधिकार वंचन अभियान: यादव
योगेंद्र यादव ने कहा कि यह न केवल भारत के इतिहास का, बल्कि किसी भी लोकतंत्र के इतिहास का सबसे बड़ा मताधिकार वंचन (disenfranchisement) अभियान हो सकता है। उन्होंने इसे सिर्फ संशोधन नहीं, बल्कि मतदाताओं पर बोझ डालने में एक “भूकंपीय बदलाव” (tectonic shift) बताया।
उन्होंने अदालत में एक महिला को पेश किया, यह दावा करते हुए कि ड्राफ्ट मतदाता सूची में उन्हें मृत दिखाया गया है।
ECI की ओर से पेश हुए श्री द्विवेदी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह “ऐसा ड्रामा है जिसे अदालत में नहीं, बल्कि टीवी पर रखना बेहतर है।”
12 अगस्त, 2025 | 16:40 बजे
दिनभर की सुनवाई समाप्त
जस्टिस बागची ने कहा कि श्री योगेंद्र यादव ने उत्कृष्ट विश्लेषण प्रस्तुत किया है, भले ही अदालत उससे सहमत हो या न हो।
इसके बाद पीठ ने दिनभर की कार्यवाही समाप्त की।