नई दिल्ली, 6 अक्टूबर 2025।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक रूप से केंद्र सरकार से कहा कि वह जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की निवारक हिरासत के आधार उनकी पत्नी डॉ. गीतांजलि आंगमो के साथ साझा करने पर विचार करे, भले ही केंद्र ने इसे एक “भावनात्मक वातावरण” बनाने की कोशिश बताया हो।
🔹 हिरासत और याचिका का संदर्भ
ज्ञात हो कि सोनम वांगचुक को 24 सितंबर को लेह में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद 1980 के राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लिया गया था।
उनकी पत्नी डॉ. गीतांजलि आंगमो ने शीर्ष अदालत से यह याचिका दायर की थी कि हिरासत में लेने वाले अधिकारी उनके पति को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें। उन्होंने यह भी कहा कि 26 सितंबर को जोधपुर में वांगचुक को हिरासत में लिए जाने की खबर के बाद दस दिन बीत चुके हैं, लेकिन अब तक उनकी सेहत या हिरासत के आधारों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।
🔹 केंद्र को नोटिस और अदालत की टिप्पणी
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने केंद्र और लद्दाख प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए कहा कि “फिलहाल कुछ तो किया गया है” और सुनवाई 14 अक्टूबर तक स्थगित कर दी।
पीठ ने यह भी कहा कि जलवायु कार्यकर्ता की हिरासत के आधार उनकी पत्नी के साथ साझा करने या न करने का निर्णय पूरी तरह केंद्र और संबंधित अधिकारियों पर निर्भर करेगा।
🔹 कपिल सिब्बल ने क्या कहा
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत का ध्यान NSA की धारा 8 की ओर दिलाया, जिसके अनुसार हिरासत के आधार केवल व्यक्ति को ही बताना आवश्यक है। उन्होंने दलील दी कि यदि श्रीमती आंगमो को हिरासत के कारणों की जानकारी नहीं होगी, तो वे यह साबित ही नहीं कर पाएंगी कि हिरासत मनमानी या अवैध है।
इस पर न्यायमूर्ति कुमार ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा —
“हमें नहीं पता… लेकिन आप इतने तकनीकी क्यों हो रहे हैं? देखिए क्या आप आधार उन्हें दे सकते हैं।”
तुषार मेहता ने कहा कि हिरासत के आधार पहले ही सोनम वांगचुक को साझा किए जा चुके हैं और NSA के तहत पत्नी को देने की कोई अतिरिक्त बाध्यता नहीं है।
🔹 चिकित्सकीय आवश्यकताएँ और मुलाकात का मुद्दा
वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तंखा ने अदालत से अपील की कि हिरासत में रखने वाले अधिकारियों को आदेश दिया जाए कि वे श्रीमती आंगमो को अपने पति से मिलने की अनुमति दें।
उन्होंने हिरासत में जलवायु कार्यकर्ता की स्वास्थ्य स्थिति को लेकर भी चिंता व्यक्त की। इस पर अदालत ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे सोनम वांगचुक को जेल नियमों के तहत सभी आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाएँ प्रदान करें।
पीठ ने श्रीमती आंगमो से कहा —
“आप अनुमति के लिए अधिकारियों के पास जाएँ, अगर नहीं मिली तो हमसे संपर्क करें।”
🔹 याचिका में लगाए गए गंभीर आरोप
श्रीमती आंगमो की याचिका में कहा गया है कि हिरासत “दुर्भावनापूर्ण” और “लोकतांत्रिक असहमति को कुचलने के उद्देश्य से” की गई है।
याचिका के अनुसार, वांगचुक और उनके सहयोगियों के खिलाफ झूठे आरोपों और प्रचार की एक संगठित मुहिम चलाई गई, ताकि लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी और पर्यावरण की रक्षा के लिए चल रहे गांधीवादी आंदोलन को बदनाम किया जा सके।
उन्होंने कहा कि वांगचुक लगातार राष्ट्रीय एकता को सशक्त करने के लिए कार्य करते रहे हैं — चाहे वह सेना के समर्थन में ऊँचाई वाले आश्रय हों या सीमा क्षेत्रों में नवाचार आधारित पहलें।
🔹 संवैधानिक अधिकारों पर सवाल
याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत हिरासत आदेश या उसके आधारों की प्रति परिवार को न तो दी गई और न ही संप्रेषित की गई।
यह सरकार की पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाता है।
🔻 निष्कर्ष
सोनम वांगचुक की हिरासत का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की आज़ादी का सवाल नहीं, बल्कि नागरिक अधिकारों, पारदर्शिता और पर्यावरणीय असहमति के लोकतांत्रिक स्थान से जुड़ा है।
सवाल यह है कि क्या सरकार असहमति को राष्ट्रीय सुरक्षा के समान मानेगी?
और क्या अदालतें इस असंतुलन को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ेंगी, या फिर “कुछ तो किया गया है” जैसे वाक्य ही न्याय का प्रतीक बन जाएंगे?
