“एक रुपये की ज़मीन” और गोदी सेठ का कमाल #satire #newsanalysis #viralnews #facts  #hindinews #news

नई दिल्ली।
आजकल एक रुपये में ज़मीन देने की ख़बरें यू-ट्यूब और सोशल मीडिया पर खूब घूम रही हैं। कोई चिल्ला रहा है—“देखो, उद्योगपतियों को मुफ़्त में ज़मीन बाँट दी!”

पर असल खेल थोड़ा अलग है। सरकार की पुरानी नीति है: जो कंपनी भारी निवेश लाएगी, सरकार उसे ज़मीन आवंटित करेगी।
क़ागज़ पर एक रुपया बस औपचारिकता है—जैसे किराए का एग्रीमेंट में ‘₹1’ लिख देते हैं, ताकि क़ानूनी मुहर लग सके।

ज़रा इसे घर-ऑफिस वाली मिसाल से समझिए:
मान लीजिए कोई आपके फ्लैट में ऑफिस खोलता है, आपके बेटे-बेटी को नौकरी देता है, मेंटेनेंस का सारा खर्च उठाता है। कागज़ पर किराया ₹5,000 है, लेकिन आपके घर के दो लोग उसकी कंपनी से ₹20,000 कमा रहे हैं।
बाहर से देखने वाला कहेगा—“मुफ़्त में रह रहा है!”
असल में पैकेज कहीं और से आ रहा है।

नागरिक पत्रकारिता बनाम “बिना होमवर्क”

मैं हमेशा सिटीजन जर्नलिज़्म का समर्थक रहा हूँ।
लेकिन जब कोई बिना नीतियों को समझे बस “एक रुपया” वाला थंबनेल बनाता है, तो पत्रकारिता की पढ़ाई की अहमियत समझ में आती है।
एडिटर की परत हटते ही ‘फैक्ट’ की जगह ‘फ्लैश’ हावी हो जाती है।

और अब तंज़ का असली तड़का

पर सवाल यहीं खत्म नहीं होता।
कैसे हर बार टेंडर “गोदी सेठ” की झोली में गिरता है?
क्या बाक़ी सारी कंपनियां सच में महा-बुरबक हैं?
या फिर टेंडर का लिफ़ाफ़ा कहीं पहले ही झाँक लिया जाता है?
हम मान भी लें कि सेठ दूरदर्शी हैं, सबसे तेज़ हैं—
तो भी यह “हर बार” वाली किस्मत ग़ज़ब नहीं है?

किसान कहते हैं ज़मीन अधिग्रहण का मुआवज़ा कम मिला,
वीडियो निकलते हैं, विरोध होते हैं—
फिर कोई कह देता है: “सब डीपफ़ेक है।”
और हम सब चैन से नारा लगा देते हैं—
“मोदी जी जिंदाबाद, गोदी सेठ जिंदाबाद, भारत माता की जय!”

जय हिंद।

आजकल एक रुपए में किसी बड़े उद्योगपति को जमीन देने की बात सुर्खियों में है । कोई यूट्यूबर है जो सवाल उठा रहा है कि 1 रुपए में जमीन कैसे दे दी गई तो इसका बड़ा ही सिंपल जवाब है सरकार की शुरू से ही नीति ऐसी रही है कि जो भी कंपनी भाड़ी निवेश करेगी उसको जमीन सरकार ही आवंटित करेगी अब एक रुपया का मसला क्या है तो ये फॉर्मल रकम है फॉर्मेलिटी के लिए जिसमें ये जिक्र होता है कि ये जमीन कितने सालों की लिए संबंधित कंपनी को गई है इसको थोड़ा और आसान करते हैं मान लिया जाए आपके यहां कोई किराए पर फ्लैट या घर लेता है और वहां पर एक ऑफिस खोलता है और आपका बेटा बेटी सबको नौकरी पर रख लेता है साथ ही आपके मकान का मेंटेनेंस से लेकर सारे खर्च भी वो वहन करता है इस कंडीशन में मान लिया जाए उसका किराया 5000 है अब वो आपके लड़के को सैलरी 15000 दे रहा है या फिर सैलरी को 20000 करके किराए को गोल कर देता है तो देखने में तो यही आपको लगेगा कि ये तो मुफ्त में रह रहा है मगर उसके अंदर का जो समंदर है उसको आप देख नहीं पा रहे है । मै हमेशा से इस बात का पक्षकार रहा हु की सिटीजन जर्नलिज्म को बढ़ावा मिलना ही चाहिए मगर जब ऐसे लोग जो बिना बात की गहराई को समझे इस तरह की पत्रकारिता जब करते हैं तब न तो उनके पास कोई सम्पादक है न ही उस खबर के आगे पीछे देखने वाला तब मुझे पत्रकारिता की पढ़ाई की अहमियत समझ में आती है बाद बांकी मेरे मन में बस एक ही सवाल रह गया कि कैसे सारे के सारे टेंडर अदानी को चले जाते हैं कैसे हर बार गोदी सेठ का बीड़ सबसे कम होता है या तो गोदी सेठ भी मेरी तरह दूरदर्शी है या फिर टेंडर का लिफाफा गोदी सेठ को पहले ही देखने को मिल जाता है कुछ तो गड़बड़ है । चलिए मान लीजिए आप भी और हम भी की गोदी सेठ दूरदर्शी है सबसे तेज है और ये सब जो कंपनी जो गोदी सेठ नहीं है ये सब महा बुरबक है क्या जी ठीक कह रहे न समझ रहे हैं न वैसे जिनका जमीन अधिग्रहण सरकार ने किया है वो भी चिल्ला रहे थे कि उनको पैसा नहीं मिला या कम मिला । चलिए मान लेते हैं इसको भी ये भी फेक न्यूज है सब किसान झूठ बोल रहा है सब डीप फेंक वीडियो है है न जी । बाद बाकी मोदी जी जिंदाबाद जिंदाबाद गोदी सेठ जिंदाबाद, भारत माता की जय
जय हिंद ।
धन्यवाद ।

By Aware News 24

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