हल्क एक एनिमेटेड फिल्म थी। कॉमिक्स इत्यादि से प्रेरित इस फिल्म की कहानी का नायक ब्रूस नाम का एक व्यक्ति होता है, जिसमें अनुवांशिक रूप से उसके पिता डेविड की वजह से असीमित शक्ति देने वाले कुछ गुण आ गए होते हैं। बड़ा होकर ब्रूस खुद भी वैज्ञानिक बन जाता है लेकिन तबतक उसके पिता डेविड को जो प्रयोग नहीं करने दिए गए थे, उनसे नाराज डेविड खलनायक बन चुका होता है। ब्रूस जहाँ प्रयोग कर रहा होता है, वहाँ एक दुर्घटना में उसके अनुवांशिक गुण जागृत हो जाते हैं। अब गुस्सा आते ही ब्रूस बदलकर असीमित शक्ति से संपन्न, क्रुद्ध जीव “हल्क” बन जाता था।
ब्रूस भला सा व्यक्ति था। उसे पता था इतना शक्तिशाली क्रुद्ध जीव हल्क अगर खुले में घूमता रहा तो समाज का नुकसान करेगा। इसके उलट दुष्ट स्वभाव का डेविड, जो उसका पिता था, वो उसी शक्ति को असीमित शक्ति प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाना चाहता था। दोनों की लड़ाई होनी ही थी और अंततः ब्रूस की अच्छाई, डेविड की बुराई पर जीतती है। फिल्म की कहानी और पीछे की बातचीत, डायलॉग पर ध्यान दें तो ये सुनाई दे जाता है कि शक्ति बढ़ने पर अच्छे मनुष्य की अच्छाई बढ़ेगी तो बुरे की बुराई भी बढ़ जाएगी।
हिन्दुओं की पौराणिक कथाओं में इसके कई उदाहरण मिल जाते हैं। सबसे अच्छा उदाहरण शायद ऋषि विश्वामित्र का होगा। वो राजऋषि थे लेकिन लोभ-इर्ष्या-द्वेष इत्यादि भाव उनके मन से गए ही नहीं थे। पहले लोभ के कारण वो ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु हड़प लेने का प्रयास करते हैं। उनकी सैन्य शक्ति ऋषि के तप और कामधेनु की सहायता के सामने कहीं नहीं टिकती। जब उन्हें समझ में आता है कि ये शक्ति तपस्या से आती है तो वो स्वयं तप में जुट जाते हैं। जब उन्हें भगवान शिव से कई अस्त्र-शस्त्र मिल जाते हैं तो वो फिर से वसिष्ठ से लड़ने पहुँच जाते हैं।
दिव्यास्त्रों की मदद से शुरू में तो उन्हें सफलता मिलती दिखती है लेकिन ऋषि अपना ब्रह्मदंड उठाते हैं और वो विश्वामित्र के सभी दैवी अस्त्र-शस्त्रों को सोख लेता है। विश्वामित्र की लम्बी सी कहानी मी भी यही दिखता है कि शक्ति बढ़ने के साथ स्वाभाविक गुण भी बढ़ने लगते हैं। ऋषि विश्रवा का पुत्र होने भर से रावण कोई संत नहीं हो जाता। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे हाल ही में “महात्मा” कहलाने वाले गाँधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन को दक्षिण अफ्रीका में पैसे का गबन करने के लिए जेल में डाला गया। या फिर जिसे एक कुख्यात पक्षकार बरखा दत्त “हेडमास्टर का बेटा” बताती है, वो आतंकी बुरहान कुत्ते की मौत मारा गया।
शिक्षा से सुधार आएगा, या बदलाव हो जाएगा, ऐसा तब हो सकता है जब आप नैतिक शिक्षा, या धार्मिक शिक्षा दे रहे हों। सिर्फ शिक्षित कर देने से तो काफिरोंफोबिया से ग्रस्त कोई भी गुंडा, बड़ा आतंकी ही बनेगा। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे सिविल इंजीनियरिंग करके भी ओसामा बिन लादेन हजारों लोगों को मारने वाला आतंकी बनता है। काफिरोंफोबिया से ग्रस्त अफजल गुरु के ऊपर अर्थशास्त्र की पढ़ाई से कोई असर नहीं पड़ता। सबसे ताजा मामला काफिरोंफोबिया दिखाने वाले अहमद मुर्तजा का है। काफिरों के लिए मंदिर हो, ये मुर्तजा को कैसे बर्दाश्त होता? उसने आईआईटी मुंबई से केमिकल इंजिनियर होने के बाद भी उसने गोरखनाथ मंदिर-मठ पर हमला कर दिया।
बाकी सामान्य व्यक्ति और मूर्ख में एक अंतर ये भी होता है कि सामान्य व्यक्ति को पता होता है कि एक तरीके से किये एक कार्य का इस बार जो नतीजा निकला, अगली बार भी वही नतीजा होगा। मेरे घर में चूल्हा जलाकर उसपर एक बर्तन में पानी चढ़ा दें तो वो थोड़ी देर में उबलेगा। किसी और के घर पर, कहीं और जाकर, किसी और समय यही हरकत दोहराई जाए तो नतीजा बदलेगा नहीं। जलते चूल्हे पर बर्तन में रखा पानी थोड़ी देर में उबलेगा ही। मूर्ख लोग सोचते हैं अलग समय या अलग जगह पर नतीजा बदल जायेगा। प्रयास जारी रखिये, नतीजे कितने बदलने वाले हैं, वो तो प्रयास करने वालों को भी पता ही है!