पेशे से ब्लॉगर मनीष वर्मा लम्बे समय से सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं। उन्हें “पुतुल फाउंडेशन” की ओर से “आल इंडिया सुनैना वर्मा मेमोरियल क्रिकेट टूर्नामेंट” आयोजित करवाने के लिए भी जाना जाता है। उनकी संस्था “पुतुल फाउंडेशन” मुख्यतः स्वास्थ्य और महिलाओं के स्वास्थ्य, शौच आदि मुद्दों पर काम करती है। इस बार जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मनीष का ध्यान पटना में ऐसे परिवारों पर गया जहाँ कई सदस्य कोरोना से संक्रमित हो गए थे। विशेष तौर पर जहाँ बच्चे छोटे थे या घरों में बुजुर्ग थे, वहाँ खाना एक बड़ी समस्या थी। मरीज खुद खाना बना नहीं सकते थे और अगर बाहर से खाना मंगवाया भी जाता तो वो बहुत खर्चीला तथा मरीजों के लिए उचित नहीं होता।

पुतुल फाउंडेशन के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर मनीष ने तय किया कि ऐसे परिवारों को शुद्ध शाकाहारी भोजन उपलब्ध करवाया जाये। कोविड – 19 संक्रमण के बारे में आधी-अधूरी जानकारी और अफवाहों के भय से इनके परिवारों में लोगों ने आना जाना बंद कर रखा था। खाने के बिना उन्हें समस्या नहीं हो, इसलिए पुतुल फाउंडेशन की और से मनीष, दिव्या आदि ने खाना पहुँचाने की जिम्मेदारी संभाली। उनके प्रयासों को देखकर कई स्वयंसेवक भी उनके साथ आ जुटे और इस तरह मरीजों के परिवारों में और कोरोना संक्रमित घरों में खाना पहुँचाने की शुरुआत हो गयी। पंद्रह दिन बीतते बीतते पुतुल फाउंडेशन ने आस पास के इलाके में खाने की सुचारू व्यवस्था कर डाली।

दिव्या वर्मा जो फाउंडेशन की ट्रस्टी होने के साथ ही साथ क्राइस्ट कॉलेज बेंगलुरु की छात्रा हैं, इस काम में तन-मन से मदद करने में जुट गयीं। उन्होंने आस पास के ऐसे परिवारों का पता लगाया जहाँ खाने की समस्या आ रही थी। जल्द ही ऐसे सौ से अधिक खाने के पैकेट घरों में पहुंचाए जाने लगे। हरेक घर तक जाने, फ़ोन के जरिये मरीजों की तबियत और अन्य जरूरतों के बारे में भी दिव्या लगातार पता करती रही। जल्दी ही कई और स्वयंसेवक भी दिव्या और मनीष के प्रयासों में आ जुटे।

पुतुल फाउंडेशन के सतीश चन्द्र वर्मा एवं रश्मि बताते हैं कि ऐसा कोई प्रयास शुरू में भागीरथी लग रहा था। उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि अपने व्यक्तिगत स्रोतों के जरिये वो कितने लोगों को खाना पहुंचा पायेंगे। खाना बनाने और पहुँचाने में होने वाला खर्च एक बड़ी समस्या थी, लेकिन “लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया” की तर्ज पर उनके लिए भी मदद आती रही। सतीश चन्द्र वर्मा मानते हैं कि सामाजिक सहयोग के मामले में बिहार का समाज एक मिसाल है। उन्होंने कामना की कि समाज ऐसा ही एकजुट रहे, ना कि जैसा जाति-धर्म के नाम पर उसे विखंडित माना जाता है, वैसा हो।

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