खड़गपुर, पश्चिम बंगाल | 3 जुलाई, 2025
पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है, जब पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और खड़गपुर के पूर्व विधायक दिलीप घोष ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) पर लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन और “राजनीतिक गुंडागर्दी” को बढ़ावा देने का गंभीर आरोप लगाया।
घटना के केंद्र में हैं अनिल दास, जो एक वरिष्ठ नागरिक और सीपीएम नेता हैं, जिन पर कथित तौर पर TMC की स्थानीय नेता बेबी कोले और उनकी सहयोगियों द्वारा शारीरिक हमला किया गया। इस हमले का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि एक बुजुर्ग व्यक्ति को महिलाओं द्वारा घसीटा और पीटा जा रहा है।
💥 क्या हुआ था घटनास्थल पर?
सूत्रों के मुताबिक, यह विवाद भूमि अतिक्रमण से संबंधित था। बेबी कोले और उनकी सहयोगियों का कथित तौर पर एक बुजुर्ग महिला से ज़मीन को लेकर झगड़ा हुआ, जिसमें अनिल दास ने मध्यस्थता करने की कोशिश की। लेकिन इसके बदले उन्हें सड़क पर पीटा गया, जिसके बाद वह किसी तरह जान बचाकर भागे।
अनिल दास का कहना है,
“मैंने बीच-बचाव की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मुझे ही निशाना बना लिया। मैं किसी तरह भागा, लेकिन मुझे सड़क पर घसीटते हुए पीटा गया।”
🚨 पुलिस कार्रवाई और एफआईआर का मामला
घटना के बाद FIR दर्ज की गई है, लेकिन भाजपा नेता दिलीप घोष का आरोप है कि पुलिस इस मामले में निष्क्रिय रही है। उन्होंने कहा कि:
“कौन गिरफ्तार करेगा? TMC नेता पहले ही पुलिस स्टेशन में जाकर तय करते हैं कि FIR कैसी लिखी जाए। चार दिन तक एक साधारण शिकायत दर्ज नहीं की गई।”
🎥 वायरल वीडियो से बढ़ा जनाक्रोश
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे एक बुजुर्ग व्यक्ति को महिलाओं द्वारा खुलेआम सड़क पर मारा जा रहा है। सोशल मीडिया पर इसे लेकर भारी विरोध देखा गया और #JusticeForAnilDas ट्रेंड करने लगा।
🗣️ राजनीतिक प्रतिक्रिया
दिलीप घोष ने इस घटना के बाद खुद अनिल दास से उनके घर जाकर मुलाकात की, और उनके साथ एकजुटता दिखाई। उन्होंने कहा:
“अगर TMC नगरपालिका चुनाव जीतने के बाद ही खड़गपुर में इतना आतंक फैला रही है, तो सोचिए लोकसभा या विधानसभा सीटें जीतने पर क्या होगा?”
वहीं, TMC के जिला अध्यक्ष सुजॉय हजरा ने भी घटना की निंदा की और कहा,
“हम अनिल दास पर हुई बर्बरता का विरोध करते हैं और दोषियों के खिलाफ कड़ी सज़ा की मांग करते हैं।”
✅ निष्कर्ष
खड़गपुर की यह घटना सिर्फ एक स्थानीय विवाद नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक असहिष्णुता और प्रशासनिक पंगुता का प्रतीक बन चुकी है।
बुजुर्गों और विपक्षी विचारधारा के लोगों पर खुलेआम हमला, फिर भी कार्रवाई न होना, लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।
क्या बंगाल की राजनीति अब संवाद से ज़्यादा सड़क पर दादागिरी से संचालित होगी?
क्या कानून का डर समाप्त हो गया है?
इन सवालों पर विचार आवश्यक है।