कांग्रेस शिक्षक भर्ती के लिए अधिवास नीति वापस लेने के बिहार सरकार के फैसले का समर्थन करती है

पटना, तीन जुलाई (भाषा) बिहार प्रदेश कांग्रेस ने राज्य में स्कूलों में शिक्षकों की नई भर्ती के लिए अधिवास नीति को वापस लेने के बिहार सरकार के फैसले का समर्थन किया है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकार ने 27 जून को घोषणा की थी कि शिक्षकों की भर्ती के लिए अधिवास नीति नहीं अपनाई जाएगी। इसका विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ-साथ महागठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन कर रहे वाम दलों ने भी विरोध किया है।

बिहार विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत के दौरान कहा, ‘‘राज्य सरकार ने उचित विचार-विमर्श के बाद शिक्षकों की नई भर्ती के लिए प्रदेश का निवासी होने की अनिवार्यता को वापस लेने का निर्णय लिया होगा। यह एक जटिल मुद्दा है और इसे समग्रता में समझा जाना चाहिए।”

कांग्रेस प्रदेश की महागठबंधन सरकार का हिस्सा है और नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में उसके दो मंत्री हैं।

राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए खान ने कहा, ‘‘डोमिसाइल की शर्त को वापस लेने के सरकार के फैसले में कुछ भी गलत नहीं है। यदि हम राज्य में स्कूल शिक्षकों की नई भर्ती के लिए डोमिसाइल की शर्त को वापस नहीं लेते हैं, तो हमारे पास अन्य राज्यों में नौकरी चाहने वाले बिहार के उम्मीदवारों पर हमलों की निंदा करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं होगा। यदि हम सभी भारत के नागरिक हैं तो डोमिसाइल का प्रश्न कहां से आता है।’’

उन्होंने कहा,“राज्य सरकार ने अच्छा निर्णय लिया है। हमें इसकी सराहना करनी चाहिए।”

हालांकि कांग्रेस नेता ने राज्य सरकार को नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों से वार्ता करने और उनकी शंका दूर करने की सलाह देते हुए कहा, ‘‘सरकार को नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के साथ बातचीत करनी चाहिए जो इस फैसले का विरोध कर रहे हैं और नए नियम से संबंधित उनकी आशंकाओं को स्पष्ट करना चाहिए।’’

अन्य राज्यों के निवासियों को शिक्षक की नौकरी के लिए आवेदन करने की अनुमति देने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ शनिवार को सैकड़ों युवा बिहार की राजधानी में सड़कों पर उतर आए थे जिसके बाद पुलिस ने कार्रवाई की।

हालांकि शिक्षक की नौकरी के लिए अधिवास नीति को रद्द करने के राज्य सरकार के फैसले का बिहार में वाम दल ने विरोध किया है और उन्होंने 10 जुलाई से शुरू होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र में इस मुद्दे को उठाने की घोषणा की है।

बिहार विधानसभा में भाकपा माले और माकपा सहित वाम दलों के 16 सदस्य हैं।

पालीगंज सीट से भाकपा माले के विधायक संदीप सौरव ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘यह निर्णय उन लोगों के हित में नहीं है जो राज्य में शिक्षक की नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं। जब कई राज्य बिहार के छात्रों को वहां सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं तो बिहार सरकार ने यहां की अधिवास नीति क्यों वापस ले ली।”

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को यह फैसला वापस लेना होगा।

इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए माकपा विधायक अजय कुमार ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘सरकार का यह निर्णय राज्य में नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के साथ सरासर अन्याय है जो शिक्षक की नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम इस मुद्दे को राज्य विधानसभा के आगामी मानसून सत्र में उठाएंगे।”

इससे पहले सरकार के फैसले का बचाव करते हुए बिहार के शिक्षा मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के वरिष्ठ नेता चन्द्रशेखर ने कहा था कि राज्य में योग्य उम्मीदवारों की कमी के कारण राज्य के स्कूलों में प्रधानाध्यापकों के कई पद खाली हैं।

उन्होंने कहा था “ प्रधानाध्यापकों के 6000 पद हैं जिनपर सिर्फ 369 उम्मीदवारों का चयन किया जा सका। इसलिए यदि अन्य राज्यों के युवाओं को बिहार के स्कूलों में आवेदन करने की अनुमति दी जाती है, तो राज्य को योग्य उम्मीदवार मिलेंगे।”

शिक्षा मंत्री ने दावा किया था कि अगर देश भर के प्रतिभाशाली युवाओं को आवेदन करने की अनुमति दी जाए तो स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में निश्चित रूप से सुधार होगा।

हालांकि वरिष्ठ भाजपा नेता और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने राज्य शिक्षक भर्ती नियमों में संशोधन पर कड़ी आपत्ति जताई और इसे तत्काल वापस लेने की मांग की।

मोदी ने दावा किया था कि यह फैसला राज्य के प्रतिभाशाली युवाओं का अपमान है क्योंकि उन्हें नौकरी से वंचित किया जा रहा है।

By Aware News 24

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