कोविड और आपदा प्रबंधन से जुड़े ज़मीनी संगठनों ने सीखा सोशल मीडिया के ज़रिए कैसे लाएं बदलाव
यूनिसेफ़ द्वारा सिविल सोसाइटी संगठनों के लिए सोशल मीडिया पर ओरिएंटेशन कार्यक्रम आयोजित
पटना, 7 सितंबर: सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है. ख़ासकर कोविड काल में इसकी प्रासंगिकता और भी ज़्यादा बढ़ गई है. बाढ़ जैसी आपदा और कोविड महामारी के दौरान बच्चों, महिलाओं और कमज़ोर वर्ग के लोगों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है. इस संदर्भ में सोशल मीडिया की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. इसी विषय को लेकर ‘मिशन सुरक्षाग्रह: कोविड पर हल्ला बोल’ के तहत यूनिसेफ़ बिहार और तीन सहयोगी एनजीओ – बिहार सेवा समिति, घोघरडीहा प्रखंड स्वराज्य विकास संघ एवं आगा ख़ान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) के संयुक्त तत्वावधान में एक ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन किया गया. छह ज़िलों- मधुबनी, दरभंगा, पूर्णिया, सुपौल, सीतामढ़ी और मुज़फ्फ़रपुर के विभिन्न सिविल सोसाइटी संगठनों, मिशन सुरक्षाग्रह के सदस्यों व सुरक्षा प्रहरियों समेत लगभग 250 लोगों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया.
यूनिसेफ़ बिहार की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने कहा कि सोशल मीडिया की अहमियत से हम सब वाकिफ़ हैं. हाल में बिहार सरकार द्वारा कोविड टीकाकरण महाअभियान के दौरान लोगों को मोबिलाइज़ करने में व्हाट्सऐप ग्रुप्स और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का काफ़ी योगदान रहा है. इसीप्रकार, कोविड उपयुक्त व्यवहार के प्रति लोगों को जागरूक करने में भी इसकी उल्लेखनीय भूमिका रही है. इसके माध्यम से हम स्थानीय स्तर पर हो रही गतिविधियों को भी पलक झपकते पूरी दुनिया तक पहुंचा सकते हैं. लेकिन हमें पूरी ज़िम्मेदारी के साथ इसका इस्तेमाल करना चाहिए. हमारी ज़रा सी लापरवाही इस तकनीकी वरदान को अभिशाप में बदलने में सक्षम है. इस संदर्भ में बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा एक बड़ा मसला है. इसके लिए साइबर सेल व अन्य संबद्ध विभागों की सहायता लेने में तत्परता दिखानी चाहिए. किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित कोई फ़ोटो अथवा वीडियो पोस्ट या ट्वीट करने के पहले हमें उनकी लिखित अनुमति (कंसेंट) लेना आवश्यक है. ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली संस्थाओं व संगठनों को इसे अपनी कार्य संस्कृति का हिस्सा बनाना चाहिए.
जाने माने ब्लॉगर, लेखक और सोशल मीडिया एक्सपर्ट आनंद कुमार ने अपने प्रस्तुतिकरण के दौरान कहा कि 2012 में प्रकाशित 5 करोड़ आंकड़े की तुलना में आज भारत में फ़ेसबुक यूजर्स की संख्या लगभग चार गुना बढ़ गई है. बिहार की भी तक़रीबन 40 फ़ीसदी आबादी फ़ेसबुक या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर एक्टिव है. सोशल मीडिया के विभिन्न आयामों पर रौशनी डालने के साथ साथ उन्होंने व्यक्तिगत फ़ेसबुक अकाउंट एवं किसी संस्था के फ़ेसबुक पेज से जुड़ी बारीकियाँ समझाईं. बेहतर पोस्ट या ट्वीट के संबंध में उन्होंने कहा कि सिर्फ़ आंकड़ों की बज़ाए पोस्ट को कहानी में पिरोकर हम ज़्यादा प्रभावी ढंग से अपना संदेश प्रसारित कर सकते हैं. टाइमिंग यानि अपने लक्षित समूह के मद्देनज़र किस समय पर और कितनी आवृत्ति के साथ पोस्ट या ट्वीट करना चाहिए, का विशेष महत्व है. साथ ही, पोस्ट या ट्वीट को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने में हैशटैग और टैगिंग के अलावा प्रभावशाली व्यक्तियों व सेलिब्रिटीज़ का भी ख़ास योगदान होता है. सोशल मीडिया के माध्यम से सिविल सोसाइटी संगठन बच्चों, महिलाओं अथवा वंचित समुदाय के हितों को लेकर कैंपेन डिज़ाइन भी कर सकते हैं.
यूनिसेफ़ बिहार के मीडिया कंसल्टेंट अभिषेक आनंद ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल से जुड़ी ज़रूरी सावधानियों पर चर्चा करते हुए कहा कि पोस्ट अथवा ट्वीट में हमेशा सभ्य और सुस्पष्ट भाषा का प्रयोग करना चाहिए. भ्रामक और फ़र्ज़ी आंकड़े साझा करने से हर हाल में बचना चाहिए. इसके लिए सूचना के सही स्रोतों जैसे पीआईबी, आईपीआरडी, सरकारी वेबसाइट्स व सोशल मीडिया हैंडल्स समेत यूनिसेफ़, विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे यूएन एजेंसीज़ के आंकड़े और सूचनाएँ इस्तेमाल करनी चाहिए. संदिग्ध अथवा भ्रामक पोस्ट, व्हाट्सऐप मैसेज अथवा वीडियो की पुष्टि के लिए पीआईबी समेत अन्य विश्वसनीय वेबसाइट्स के फ़ैक्ट चेक सुविधाओं का लाभ उठाया जा सकता है. व्हाट्सऐप पर आए किसी संदिग्ध संदेश, फ़ोटो अथवा वीडियो को पीआईबी द्वारा मुहैया कराए गए व्हाट्सऐप नंबर 8799711259 के अलावा ट्वीटर पर @PIBFactCheck और फ़ेसबुक पर /PIBFactCheck टाइप कर भेजकर उसकी सत्यता सुनिश्चित की जा सकती है. इसके अलावा भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा फ़रवरी 2021 में जारी अधिसूचना में उद्धृत सोशल मीडिया से संबंधित दिशानिर्देश का समुचित पालन किया जाना चाहिए.
श्याम कुमार सिंह, अशोक कुमार, प्रशांत कुमार सिंह समेत तीनों भागीदार एनजीओ के प्रतिनिधियों ने मिशन सुरक्षाग्रह से जुड़े कामकाज में सोशल मीडिया के महत्व पर अपने अनुभव साझा किए और कार्यशाला के संबंध में कुछ ज़रूरी सुझाव भी दिए. खुली चर्चा के दौरान विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब दिए और उनके सुझावों पर भी गहन विचार विमर्श किया गया.