नई दिल्ली।
डेमोक्रेसी हो या “यू-मोकरेसी”—हम आम लोग आखिर चाहते क्या हैं?
ना तो संसद में शोर मचाने का शौक, ना गद्दी पर किसका नाम हो इसका जुनून।
बस इतना कि जीवन-स्तर ऊँचा हो,
जिस स्कूल में बच्चा पढ़ना चाहे, वहां दाखिला मिले,
जो मन करे खाएं-पिएं और दुनिया घूमने का किराया सोचने की ज़रूरत न पड़े।
बाक़ी सिंहासन पर मोदी बैठें या मोहन—किसे परवाह?
चीन का ‘भौकाल’
उधर चीन ने 2021 में ऐलान कर दिया—“अब हमारे यहां कोई गरीब नहीं।”
कहते हैं वर्ल्ड बैंक 1.90 डॉलर प्रतिदिन को गरीबी रेखा मानता है,
पर शी जिनपिंग बोले—“हम 2.30 डॉलर को मानक बनाएंगे।”
वाह, थ्रेशहोल्ड भी प्रीमियम!
फिर उद्योगपतियों को संदेश: “जो ज़रूरत से ज़्यादा कमा लिया, समाज को लौटाओ।”
जैक मा की अचानक चुप्पी तो याद होगी—नया CSR वर्ज़न, ‘Contribution by Compulsion’।
भारत का तर्क
हमारे यहां?
सरकार मुफ्त राशन और सस्ती रसोई पर गर्व करती है—“देखो, 50 रुपये में दिन कट सकता है।”
गरीबी रेखा को खिसकाना तो दूर,
हम तो अभी भी “जुगाड़ से गुज़ारा” को उपलब्धि मानते हैं।
कॉरपोरेट और सत्ता
इधर राजनीतिक पार्टियां चंदे पर चलती हैं,
और चंदा देने वाले वही जिनका नाम आप रोज़ हेडलाइन में पढ़ते हैं।
कहने को लोकतंत्र, करने को वही—
“टेंडर उसी को मिलेगा जो करीब होगा।”
कल अदानी, परसों कोई और;
वीडियो हटाओ, लिंक दबाओ—खेल चलता रहेगा।
असली चाहत
तो सवाल यह नहीं कि सिंहासन किसका है।
सवाल यह है कि—
क्या हमारी जेब, हमारी पढ़ाई, हमारी यात्राएं आसान हो रही हैं?
राजनीति की बहसें गर्म होंगी, हैशटैग बदलेंगे,
पर जब तक स्कूल की फीस चुकाना और घर का किराया देना आसान नहीं,
तब तक लोकतंत्र और अधिनायक—दोनों बस शब्द रहेंगे।
देखिए हमको डेमोक्रेसी umocracy से कोई मतलबे नहीं है , हमारा बेहतर स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग होना चाहिए , जो मन करे खाने पीने का उ होना चाहिए। मेरा बाल बच्चा जिस स्कूल में पढ़ना चाहे वहां पढ़ पाए । हमको दुनिया के किसी भी कोने में जाने के लिए सोचना न पड़ें कि किराया कहां से आएगा बस। इतना करवा दीजिए फिर मोदी जी देश के गद्दी पर बैठ जाए या फिर कोई और इससे हमको कोई फर्क नहीं पड़ता है। चाइना क्या किया 2021 में अपने यहां के उद्योगपतियों से कह दिया कि जो भी कंपनी जरूरत से ज्यादा कमा लिया वो सोसायटी को वापस करे , बाद बाकी si zinping ने 2021 में यह ऐलान कर दिया था कि अब चीन में कोई गरीब नहीं है इसके अलावा पूरे दुनिया के लिए वर्ल्ड बैंक ने गरीबी का मानक सेट किया है कि अगर कोई व्यक्ति 1.90 डॉलर पार्टी दिन से ज्यादा कमाता है तो उसे गरीब नहीं माना जाएगा , हमारे यहां क्या कहा जाता है हम लोग तो 50 रुपए में भी दिन निकाल लेंगे सरकार ने मुफ्त राशन से लेकर बड़े शहरों में मुफ्त रसोई या कम पैसे में बना बनाया खाने की व्यवस्था की है लेकिन चीन ने कहा कि हम नया थ्रेसहोल्ड बनाते हैं अब गरीबी का मानक हमारे यहां एक दिन में कमाई का आंकड़ा होगा 2.30 डॉलर अजबे भौकाल है । ये फैक्ट ये डेटा है उसके बाद वो और ज्यादा लोगों के लाइफ स्टाइल को अपलिफ्ट करने के लिए उद्योगपतियों से कह रहा है कि ज्यादा कमा लिए है तो गरीबों को दीजिए और अगर कोई बात नहीं मानेगा तो क्या करेगा उदाहरण के लिए जैक मा गयाबे हो गया याद ही की भूल गए बाद बाकी चीन में 20 प्रतिशत से अधिक की आबादी अमीर है ये बात उन सभी लोगों पर लागू कर दिया सी जिनपिंग ने ? आजकल मोदी जी सी जिनपिंग से दोस्ती गांठ रहें हैं तो मैने सोचा कि कुछ चीन की नीतियों पर भी श्री मोदी ध्यान दे । वहां का राष्ट्रपति का उद्योपति के प्रति क्या रवैया है ये आपको स्पष्ट हो गया होगा और हमारे यहां हाल ही में अदानी के बहुत सारे वीडियो हटाने का फरमान भी आप लोग न्यूज में सुने होंगे तो हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां इन्हीं लोगों के चंदे पर चलती है और अल्टीमेटली देश भी उद्योगपति ही चलाता है अब इससे क्या फर्क पड़ता है कि टेंडर किसको दिया जा रहा है सिंपल है जो मौजूदा पार्टी/ व्यक्ति के करीब होगा उसी को सबकुछ मिलेगा और उसी के हिसाब से देश चलेगा उसकी शान में हम और आप कुछ बोल दे हमारी क्या औकात बाद बाकी आप इसपर क्या सोचते है हमें कमेंट करके बताए
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हम किसे के दबाब मे काम नही करते यह कलम और माइक का कोई मालिक नही हम सिर्फ आपकी बात करते हैं, निष्पक्षता को कायम रखने के लिए हमने पौराणिक गुरुकुल परम्परा को पुनः जीवित करने का संकल्प लिया है ।
आपको याद होगा कृष्ण और सुदामा की कहानी जिसमे वो दोनों गुरुकुल के लिए भीख मांगा करते थे।
आखिर ऐसा क्यों था ?
तो आइए समझते हैं , वो ज़माना था राजतंत्र का अगर गुरुकुल चंदे, दान, या डोनेशन पर चलता तो जो दान दाता है, उसका प्रभुत्व उस गुरुकुल पर होता मसलन कोई राजा का बेटा है तो राजा गुरुकुल को निर्देश देते की, मेरे बेटे को बेहतर शिक्षा दो, जिससे कि भेद भाव उत्तपन होता. इसी भेद भाव को खत्म करने के लिए, सभी गुरुकुल मे पढ़ने वाले बच्चे भीख मांगा करते थे. अब भीख पर किसी का क्या अधिकार ! इसलिए हमने भी किसी के प्रभुत्व मे आने के बजाय जनता के प्रभुत्व मे आना उचित समझा ।
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