पटना, 17 दिसंबर: बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा भारत में संयुक्त राष्ट्र और यूनिसेफ बिहार के साथ मिलकर आज पटना में विकलांगता-समावेशी आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DiDRR) पर दो दिवसीय क्षमता-निर्माण कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि आपदा की तैयारी तब तक प्रभावी नहीं हो सकती जब तक कि वह डिज़ाइन से ही समावेशी न हो। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य बिहार में आपदा प्रबंधन के सभी चरणों में विकलांगता समावेशन को मुख्यधारा में लाना है। इस कार्यशाला में सभी जिलों के सहायक आपदा प्रबंधन अधिकारी, आपदा जोखिम न्यूनीकरण विशेषज्ञ और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समर्पित संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और हैंडिकैप इंटरनेशनल (ह्यूमैनिटी एंड इंक्लूजन) द्वारा तकनीकी सहयोग दिया गया।
यूनिसेफ के डीआरआर स्पेशलिस्ट श्री राजीव कुमार ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कार्यशाला के उद्देश्यों के बारे में बताया तथा इस क्षमता-निर्माण कार्यक्रम के अपेक्षित परिणामों के बारे में भी चर्चा की। इसके बाद प्रतिभागियों और तकनीकी विशेषज्ञों का परिचय हुआ।
अपने मुख्य भाषण में, बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के संयुक्त सचिव श्री नदीमुल गफ्फार सिद्दीकी ने राज्य की आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया प्रणालियों में समावेशन को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में हुई महत्वपूर्ण प्रगति को स्वीकारते हुए, उन्होंने विकलांग व्यक्तियों की सुरक्षा और उनके हितों को आपदा प्रबंधन नीतियों में पर्याप्त रूप से शामिल न कर पाने संबंधी महत्वपूर्ण कमियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने आगे कहा कि जैसे आपदाएं भेदभाव नहीं करती हैं, इसलिए हमारा प्रतिक्रिया तंत्र भी गैर-भेदभावपूर्ण और पूरी तरह से समावेशी होना चाहिए। राज्य आपदा योजनाओं को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क के साथ संरेखित करने पर काम किया जा रहा है। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने कहा कि प्रभावी, पेशेवर और जवाबदेह आपदा प्रबंधन केवल समावेशी प्रतिक्रिया तंत्र को सुशासन के मुख्य स्तंभ के रूप में शामिल करके ही वास्तव में हासिल किया जा सकता है।
बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, बिहार सरकार के सचिव श्री मो. वारिस खान ने अपने संबोधन में बढ़ते जलवायु संकट और तेज़ी से घटित होने वाली अप्रत्याशित आपदाओं के हवाले से आपदा की तैयारी और प्रतिक्रिया में दिव्यांग जनों को प्राथमिकता देने की नैतिक ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, यूनिसेफ, तथा UNDP के सहयोग और तकनीकी नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि नियमित रूप से इस तरह के क्षमता-निर्माण कार्यशालाओं को आयोजित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की बहु हितधारक भागीदारी राज्य की नीतियों और आपदा प्रबंधन ढांचे में दिव्यांगों को शामिल करने को एक मुख्य सिद्धांत के रूप में स्थापित करने के लिए ज़रूरी है।
पहले तकनीकी सत्र में दिव्यांग जनों के अनुभवों पर आधारित चर्चा में किसी आपदा की स्थिति में निकासी के दौरान आने वाली चुनौतियों, पूर्व चेतावनी प्रणाली तक सीमित पहुंच और शेल्टर तक पहुंच की कमी की पड़ताल की गई।
ह्यूमैनिटी एंड इंक्लूजन के डिजास्टर रिस्क रिडक्शन और क्लाइमेट चेंज एडैप्टेशन स्पेशलिस्ट, श्री कुमार शिवेंद्र द्वारा संचालित इस सत्र में दिव्यांग जनों के लिए काम कर रहे संगठनों के विचारों को शामिल किया गया, जिससे अधिकारियों और समुदाय के प्रतिनिधियों के बीच सीधी बातचीत हो सकी।
दिव्यांग जनों का प्रतिनिधित्व करने वाली सुश्री राधा ने बाढ़ बचाव के अपने अनुभव साझा करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि आपदा प्रतिक्रिया और राहत कार्यों के दौरान दिव्यांग व्यक्तियों के बीच लिंग-आधारित भेदभाव अक्सर बढ़ जाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया फ्रेमवर्क में विशेष रूप से ऐसी सिफारिशों और नीतिगत समाधानों को शामिल करने की ज़रूरत है जो इन भेदभावों को दूर करने सहित समावेशी व लिंग-संवेदनशील कार्रवाई सुनिश्चित करें।
कल तक चलने वाली इस क्षमता-निर्माण कार्यशाला में नीति-आधारित और प्रैक्टिकल सेशन के मिश्रण के ज़रिए विकलांगता-समावेशी आपदा जोखिम न्यूनीकरण को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। प्रतिभागी विकलांगता की मुख्य अवधारणाओं को जानने के साथ-साथ गतिविधि की सीमाएं और भागीदारी पर प्रतिबंध तथा समावेशन के समकालीन मॉडल के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे। तकनीकी सत्रों में, जोखिम वाले व्यक्तियों की पहचान, आंकड़ों की कमी के अलावा अधिकार-आधारित और समावेशी संचार दृष्टिकोणों के एकीकरण पर बात की जाएगी। साथ ही, विभिन्न समूह गतिविधियों के ज़रिए दिव्यांग जनों को प्रभावित करने वाली प्रणालीगत, पर्यावरणीय, व्यवहारिक और संचार बाधाओं की पड़ताल की जाएगी तथा समावेशी पूर्व चेतावनी प्रणालियों पर केंद्रित चर्चा की जाएगी।
