(बिहार विशेष व्यंग्य – SIR संदर्भ में)

लेखक: Aware News 24 व्यंग्य डेस्क

बिहार में इन दिनों SIR चल रहा है।
नहीं-नहीं, ये वो ‘Sir’ नहीं जो स्कूल में पढ़ाते हैं।
ये है—
Special Intensive Revision
(मतलब— मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण)

चुनाव आयोग वालों ने झाड़ू, पोछा लेकर वोटर लिस्ट की सफाई शुरू कर दी है।
किसी का नाम जोड़ा जा रहा है,
किसी का नाम काटा जा रहा है।

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार जी ने बयान ठोक दिया—
“जो लोग बिहार छोड़कर बाहर चले गए हैं, उनका नाम अब गांव की वोटर लिस्ट में नहीं रहेगा।
जहाँ रहते हो, वहीं वोट दो। मकान कहाँ है, उससे कोई मतलब नहीं।”

बिहारी जनता की परेशानी

अब बिहार के लोग परेशान हैं।
क्योंकि उनका शरीर भले मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु में हो—
“आत्मा तो गांव की मतदाता लिस्ट में ही अटकी रहती है।”

वो सोचते हैं—
“रोजी-रोटी के लिए बाहर जाना पड़ा,
तो क्या लोकतंत्र से भी नाता तोड़ दें?”

नेताओं का लोकतांत्रिक पर्यटन

लेकिन जब जनता ने गूगल किया तो खुलासा हुआ—
नेताओं के लिए ये नियम लागू नहीं होता।

  • प्रधानमंत्री दिल्ली में रहते हैं।

  • चुनाव लड़ते हैं बनारस से।

  • वोट डालते हैं अहमदाबाद में।

गृह मंत्री भी दिल्ली में रहते हैं,
लेकिन वोट डालते हैं गुजरात में।

किसी ने पूछा—
“क्या Special Intensive Revision में नेताजी का पता भी सुधरेगा?”
जवाब आया—
“नेता जी का पता तो चुनावी मौसम में ही बदलता है—
बाकी समय वो अज्ञातवास में रहते हैं।”

लोकतंत्र का पता बदलना

आम जनता के लिए अब नया नियम है—
जहाँ काम करो, वहीं वोट दो।
वरना नाम कटेगा।

लेकिन नेताओं के लिए विकल्प हैं—
जहाँ चाहो वहां से लड़ो,
जहाँ मन करे वहां वोट दो।
लोकतंत्र में “VVIP एड्रेस” का विकल्प तो होना ही चाहिए न!

निष्कर्ष:

बिहार में Special Intensive Revision चल रहा है,
पर असली Special Revision तो लोकतंत्र के नियमों में होना चाहिए।
जहाँ कानून सब पर बराबर लागू हो।
नेताओं पर भी।
वरना जनता पूछेगी—
“सर! ये नियम सिर्फ हम पर ही क्यों?”

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