धरती के निकट हुई दूसरे चंद्रमा की खोज, कम से कम 1,500 वर्ष तक रहेगा

वैज्ञानिकों ने धरती के निकट एक नए एस्ट्रॉयड की खोज की है। इसे एक ‘क्वासी मून’ या ‘क्वासी सैटेलाइट’ माना जाता रहा है। यह सूर्य का धरती के समान अवधि में ही चक्कर लगाता है। इसे FW13 कहा गया है। सूर्य का चक्कर लगाने के साथ यह धरती का भी चक्कर लगाता है। 

Live Science की रिपोर्ट के अनुसार, इस चंद्रमा का व्यास 3,474 किलोमीटर का है और यह धरती का चक्कर लगाने के दौरान अपने निकटतम बिंदु पर 36,400 किलोमीटर दूर होता है। इसे मार्च में Pan-STARRS ऑब्जरवेटरी ने खोजा था। इसके बाद इसकी मौजूदगी की पुष्टि अमेरिका के हवाई में मौजूद टेलीस्कोप और एरिजोना में दो ऑब्जरवेटरी ने की थी। इसके बाद नए प्लैनेट और अन्य खगोलीय चीजों को नामांकित करने वाले इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के माइनर प्लैनेट सेंटर ने इसे आधिकारिक तौर पर लिस्ट में शामिल किया है। यह क्वासी-मून लगभग 100 BC से धरती के निकट है और यह लगभग 3,700 AD तक मौजूद रह सकता है। इसके धरती से निकट चक्कर लगाने के बावजूद धरती से टकराने की आशंका नहीं है। कुछ रिसर्चर्स का मानना है कि यह धरती के चंद्रमा की तुलना में बहुत कम आकार का हो सकता है। 

भारत के मून मिशन का तीसरा एडिशन जुलाई में लॉन्च किया जा सकता है। भारतीय अंतरिक्षण अनुसंधान संगठन (ISRO) ने यह जानकारी दी है। इसके तीन उद्देश्यों में चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग, चंद्रमा पर यान के घूमने का प्रदर्शन और वैज्ञानिक प्रयोग करना है। इस मिशन को श्रीहरिकोटा में SDSC SHAR सेंटर से LVM3 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा। चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और मूवमेंट की क्षमता के प्रदर्शन के लिए चंद्रयान 2 के बाद चंद्रयान 3 को लॉन्च किया जाना है। ISRO के चेयरमैन, S Somnath ने बताया था कि चंद्रयान 3 को जुलाई में लॉन्च किया जाएगा। चंद्रयान 3 मिशन में देश में डिवेलप किया गया एक लैंडर मॉड्यूल, प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है। 

इस वर्ष की शुरुआत में स्पेस टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स की ग्रोथ को बढ़ाने के लिए ISRO और ग्लोबल सॉफ्टवेयर कंपनी Microsoft ने एक एग्रीमेंट किया था। इसके तहत इन स्टार्टअप्स को टेक्नोलॉजी, मार्केट से जुड़ी मदद और मेंटरिंग के जरिए मजबूत बनाया जाएगा। माइक्रोसॉफ्ट ने बताया था कि इस पार्टनरशिप से देश में उभरते हुए स्पेस टेक्नोलॉजी इनोवेटर्स और आंत्रप्रेन्योर्स को आगे बढ़ाने की ISRO की योजना में मदद मिलेगी। 

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