हाल ही में सम्पन्न हुए बिहार राज्य की विधान सभा के चुनाव परिणाम आ गए हैं एवं भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन को अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। कुल 243 विधायकों में से एनडीए गठबंधन के 202 प्रत्याशी चुनाव जीत कर विधायक बन गए हैं। विधान सभा स्तर के किसी भी चुनाव में सामान्यतः राज्य स्तर की स्थानीय समस्याओं को ध्यान में रखकर ही राज्य के नागरिक अपना वोट देते हैं। परंतु, हाल ही के समय में कई राज्यों के चुनावों में स्थानीय नागरिकों के बीच यह प्रवृत्ति घर करती जा रही है कि जो राष्ट्रीय अथवा स्थानीय दल उन्हें मुफ्त की आकर्षक योजनाएं प्रस्तुत कर रिझाने का प्रयास करता है, उस दल को उस राज्य में अधिक सफलता मिलती हुई दिखाई दे रही है। इस प्रवृत्ति का स्पष्ट संकेत दिल्ली राज्य में वर्ष 2013 में सम्पन्न हुए राज्य विधानसभा के चुनावों में, केवल एक वर्ष पूर्व गठित नए दल, आम आदमी पार्टी के इस विधान सभा चुनाव में 28 सीटों की जीत पर दिखाई दिया था। उस समय आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से अपनी सरकार बनाई थी। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली निवासियों को मुफ्त बिजली उपलब्ध कराने का वायदा इन चुनावों के दौरान किया था, जिसे बाद में पूरा भी किया गया था। इसके बाद तो दिल्ली विधान सभा चुनाव में वर्ष 2025 तक आम आदमी पार्टी का ही लगभग पूर्ण कब्जा रहा, क्योंकि मुफ्त में प्रदान की जाने वाली इसी प्रकार की कुछ और घोषणाओं को भी आम आदमी पार्टी समय समय पर लागू करती रही और दिल्ली के पढ़े लिखे नागरिकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रही। हालांकि, इस बीच दिल्ली की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती रही और दिल्ली का “बचत का बजट” – “घाटे के बजट” में परिवर्तित हो गया था।
इसके बाद तो लगभग प्रत्येक राज्य में इस प्रकार का दौर ही चल पड़ा। हिमाचल प्रदेश राज्य में कांग्रेस, सेवा निवृत्त कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के वादा, राज्य की प्रत्येक वयस्क महिला को 1500 रुपए देने का वादा एवं प्रत्येक परिवार को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा कर वर्ष 2022 में सत्ता में आ गई। बाद में जब पुरानी पेंशन योजना को हिमाचल प्रदेश में लागू किया गया तो हिमाचल प्रदेश के पहिले से ही दबाव में चल रहे बजट पर अतिरिक्त बोझ पड़ा एवं राज्य की आर्थिक स्थिति लगभग पूर्णत: डावांडोल हो गई है एवं राज्य को अपने ऋण पर ब्याज का भुगतान करने एवं राज्य के सामान्य खर्चों को चलाने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है।
इसी चलन को कायम रखते हुए हाल ही में सम्पन्न बिहार राज्य में भी विधान सभा चुनाव के समय श्री नीतीश कुमार की राज्य सरकार ने राज्य की 1.21 करोड़ महिलाओं के बैंक खातों में 10,000 रुपए की राशि सीधे जमा करवाई है। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की घोषणा 29 अगस्त 2025 को की गई थी एवं केवल एक माह के अंदर इस योजना को लागू कर दिया गया तथा राज्य की महिलाओं के बैंक खातों में राशि हस्तांतरित कर दी गई। हालांकि, राज्य में लागू की गई इस योजना को महिला सशक्तिकरण की सबसे बड़ी पहल के रूप में देखा गया क्योंकि राज्य सरकार द्वारा इस योजना को लागू करने का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना एवं रोजगार के नए अवसर निर्मित करना था। ऐसा बताया गया है कि राज्य की कुछ महिलाओं ने इस राशि से अपनी छोटी छोटी उत्पादन इकाईयों को प्रारम्भ करने में सफलता पाई है। राज्य के मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि बिहार सरकार उन महिलाओं को रुपए 2 लाख तक की सहायता राशि उपलब्ध कराएगी जिनका व्यवसाय सफल रहेगा, इस छोटे निवेश से पूरा परिवार लाभान्वित होगा। बिहार राज्य में लगभग 1.40 करोड़ जीविका दीदियां स्व सहायता समूहों के माध्यम से सक्रिय हैं। आज देश के सबसे बड़े राज्यों में बिहार राज्य में गरीब वर्ग के नागरिकों की संख्या सबसे अधिक है एवं बिहार राज्य के नागरिक रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से सबसे अधिक पलायन करते हुए दिखाई देते हैं। पूर्व में उत्तर प्रदेश राज्य की भी लगभग यही स्थिति थी, परंतु, हाल ही के समय में उत्तर प्रदेश राज्य में रोजगार के पर्याप्त नए अवसर निर्मित हुए हैं जिससे इस राज्य में नागरिकों का रोजगार के लिए पलायन रुका है। यदि बिहार राज्य भी अपने नागरिकों का पलायन रोकने में सफल रहता है एवं अपने राज्य के नागरिकों के लिए पर्याप्त मात्रा में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने में सफलता प्राप्त करता है तो यह देश के आर्थिक विकास को भी गति देने में सहायक होगा। परंतु, लाख टके का प्रश्न यह है कि क्या बिहार सरकार की आर्थिक स्थिति उक्त प्रकार की योजनाओं को चलाने की स्थिति में है?
इसी प्रकार, मध्य प्रदेश राज्य भी लाड़ली बहिना योजना को लागू कर चुका है एवं इसी तर्ज पर हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, आदि राज्यों में भी नागरिकों को मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराने की योजनाएं प्रारम्भ की गई। तमिलनाडु में तो मुफ्त में सुविधाएं उपलब्ध कराने का पुराना इतिहास रहा है। कुछ राज्यों में तो टीवी, लैपटॉप, स्कूटी, साइकल, आदि जैसे महंगे उत्पाद भी चुनावों के समस्त राज्य के नागरिकों को मुफ्त में उपलब्ध कराए जाते रहे हैं। विभिन्न राज्यों द्वारा यदि चुनाव जीतने के लिए राज्य के नागरिकों को मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराने का क्रम यदि जारी रहता है तो यह प्रचलन इन राज्यों एवं देश के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि आज सब्सिडी, वेतन, पेन्शन एवं ब्याज जैसी मदों पर लगातार बढ़ रहे खर्चों के कारण 15 राज्यों का बजटीय घाटा कानूनी रूप से निर्धारित 3 प्रतिशत की सीमा से ऊपर हो गया है। हिमाचल प्रदेश में बजटीय घाटा बढ़कर 4.7 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 4.1 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश में 4.2 प्रतिशत एवं पंजाब में 3.8 प्रतिशत के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश के कई राज्यों ने अपने पूंजीगत खर्च को घटाया है। वर्ष 2015-16 से वर्ष 2022-23 के बीच राज्यों ने अपने पूंजीगत खर्च में 51 प्रतिशत तक की कमी की है। दिल्ली में 38 प्रतिशत, पंजाब में 40 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश में 41 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 33 प्रतिशत से पूंजीगत खर्चों में कमी दर्ज हुई है। आज कई राज्य सरकारें सब्सिडी प्रदान करने की मद पर अपने खर्चों को लगातार बढ़ा रहीं हैं एवं पूंजीगत खर्चों को लगातार घटा रही हैं, जो उचित नीति नहीं कही जा सकती है। इस प्रकार तो इन राज्यों की अर्थव्यवस्थाएं शीघ्र ही डूबने के कगार पर पहुंच जाने वाली हैं।
अब यदि चुनाव जीतने के लिए विभिन्न राज्य सरकारें क्या इसी तरह की योजनाओं को लागू करती रहेंगी। यदि हां, तो इन राज्यों को अपने दिवालिया होने के लिए बहुत लम्बा इन्तजार नहीं करना होगा। क्योंकि, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में बताया गया है कि विशेष रूप से पंजाब, केरल, पश्चिमी बंगाल, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, बिहार, दिल्ली आदि राज्यों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। यदि समय पर इन राज्यों के आर्थिक ढांचे को सुधारने के प्रयास नहीं किया गए तो यह राज्य दिवालिया होने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि, समय समय पर केंद्र सरकार द्वारा सहायता की राशि उपलब्ध कराकर कई राज्यों की वित्तीय कठिनाईयों को हल करने का प्रयास किया जाता है परंतु, केंद्र सरकार भी लम्बे समय तक यह कार्य नहीं कर सकती है क्योंकि अंततः इससे केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति पर भी दबाव बनता है।
विभिन्न राज्यों के वित्तीय घाटे की स्थिति एवं प्रवृत्ति पर गम्भीरता पूर्वक विचार कर इस पर रोक लगने का समय अब आ गया है। उत्पादक कार्यों पर सब्सिडी दी जाय तो ठीक है परंतु यदि यह लोक लुभावन वायदों को पूरा करने पर दी जा रही है तो इन पर अब अंकुश लगाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा आगे बढ़कर इस सम्बंध में कुछ नियम जरूर बनाए जाने चाहिए। यदि इन राज्यों की वित्तीय स्थिति लोक लुभावन घोषणाओं को पूरा करने की नहीं है तो, इस प्रकार की घोषणाएं चिन्हित राज्यों द्वारा नहीं की जानी चाहिए, ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए। सहायता की राशि केवल चिन्हित व्यक्तियों को ही प्रदान की जानी चाहिए न कि राज्य की पूरी जनता को उपलब्ध करायी जाय। जैसा कि बिजली माफी योजना के अंतर्गत किया जा रहा है। राज्य के समस्त परिवारों को 300/400 यूनिट बिजली मुफ़्त में उपलब्ध कराए जाने के प्रयास हो रहे हैं। यदि राज्य की आर्थिक हालत बिगड़ रही है तो इसका खामियाजा भी अंततः उस प्रदेश की जनता को ही भुगतना पड़ता है। यह राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, आदि मदों पर होने वाले खर्च में कटौती करते हैं, जो राज्य के आर्थिक विकास एवं भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए ठीक नहीं है। राज्य में आर्थिक विकास की गति कम होने से इन राज्यों में रोजगार के अधिक अवसर भी निर्मित नहीं हो पा रहे है।
